पूर्व की ओर : वृन्दावनलाल वर्मा द्वारा मुफ्त ऐतिहासिक नाटक हिंदी पीडीएफ पुस्तक | Purv Ki Oar : by Vrindavanlal Verma Free Historical Drama Hindi Pdf Book

पूर्व की ओर : वृन्दावनलाल वर्मा द्वारा मुफ्त ऐतिहासिक नाटक हिंदी पीडीएफ पुस्तक | Purv Ki Oar : by Vrindavanlal Verma Free Historical Drama Hindi Pdf Book 

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Purv-Ki-Oar-Vrindavanlal-Verma-पूर्व-की-ओर-वृन्दावनलाल-वर्मा


पुस्तक का नाम / Name of Book : पूर्व की ओर / Purv Ki Oar


पुस्तक के लेखक / Author of Book : वृन्दावनलाल वर्मा / Vrindavanlal Verma


पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी / Hindi


पुस्तक का आकर / Size of Ebook : 58 MB


कुल पन्ने / Total pages in ebook : 184


पुस्तक डाउनलोड स्थिति / Ebook Downloading Status  : Medium 

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पुस्तक का विवरण : इस पुस्तक के लेखक श्री वृन्दावनलाल जी हैं | इस पुस्तक में वृन्दावन जी ने इतिहास के कुछ तथ्य प्रस्तुत किये हैं जो भारत के पोत-निर्माण शिल्प से संबंधित हैं | श्री चिंतामणि विनायक वैध्य ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक (History of Hindu medaeval India) में लिखा है कि हिंदुओं ने बड़े बड़े जलयानों का बनाना यूनानियों से सीखा जब वे कलिंग और आंध्र में फैल गए | यह सच है की यूनानी समुद्री यात्रा करते थे पोत-निर्माण शिल्प के जानकार थे और कलिंग तथा अंतर में जा बिखरे थे; परंतु उनका इन प्रदेशों में राज्य हो गया था और उन्होंने हिंदुओं को बड़े बड़े जलयानों का बनाना सिखलाया यह सच नहीं है.................


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Description about eBook : The author of this book are Mr. vrndavanalala. In this book Vrindavan lal presented  some facts of history that are related to India's ship-building craft. Shri Chintamani Vinayak legitimate in his famous book (History of Hindu Medieval India) wrote that the Hindus have large shipwrecks to create the Greeks learned when they spread in  Kalinga and Andhra. this true of the Greek cruise were ship-building crafts and Kalinga, and the difference can be in the know were scattered; But in these territories was in the state, and he flirted with making the Hindus of the large vessels is not it true..............


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One Quotation / एक उद्धरण

“सिर्फ खड़े होकर पानी को ताक कर आप समुद्र नहीं पार कर सकते।”
रवीन्द्रनाथ टैगोर

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“You can’t cross the sea merely by standing and staring at the water.” 
Rabindranath Tagore






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